काल्पनिक डर, कितना खतरनाक है ???
काल्पनिक डर कोई अन्य काल्पनिक इमोसंस (emotions ) की तरह नहीं है ,डर की तो कल्पना भी, दूसरी इमोसंस की वास्तविकता से कई गुना भयावह है
,मौत और अनिश्चितता से डरा कर ,बीमा कम्पनियों और धर्मान्धता का कारोबार बखूबी चलता है ,
अगर स्वर्ग में धार्मिकों को लालच की बात न की जाये ,और अगर बीमा कंपनी म्रत्यु के बाद तीन गुना प्रीमियम परिजनों को अदा करने का बादा न करें तो सोचो बीमा कंपनी और धार्मिकता कैसे चले ,अगर बीमार को मृत्यु का डर ना हो तो अस्पताल कैसे चलें ,
दूसरे मुल्क(दुश्मन देश ) ,दूसरे धर्म द्वारा, खुद के मुल्क ,या खुद के धर्म,जाती , पार्टी ,संविधान ,पर हमला बता कर, हर देश देश वासियों या एक धर्म,जाती ,पार्टी ,संविधान पर लोगों को खतरे से डराते है ,और अपने देश धर्म, जाती ,पार्टी ,और संविधान पर मर मरने मिटने के लिए सबको एकजुट कर लेते है ,
वास्तविकता में यह काल्पनिक डर भी ,बहुत बड़ा फेक्टर है, जो देश ,धर्म ,बीमा कंपनी, जाती ,पार्टी ,और संविधान और अस्पताल को चलाता है, ,
Friday, September 30, 2011
डर सभी को लगता है ,डर से आगे जीत है ,
डर सभी को लगता है ,डर से आगे जीत है ,
इन व्क्यंशों में छुपा है डर से मुकाबला कर दो चार हाथ कर लेने की कुब्बत ,वह गुर्जरों में कूट कूट कर भरी है ,
गुर्जरों ने डरना तो सीखा ही नहीं ,चाहे वो अरब आक्रान्ता रहे हों या अंग्रेज सबसे खूब लोहा लिया ,हार नहीं मानी रार खूब ठानी ,डर का सामना होने पर जहां अच्छे अच्छे योद्धाओं की घिग्घी बंध जाती है वहां गुर्जर डंटे रहते है ,यह सब डर से मुकाबले की ट्रेनिंग हमारे वातावरण में मौजूदऔर अंदरूनी ताकत हमारे खून और जींस मैं मौजूद है
आइये हम जाने डर से मुकाबले के लिए क्या परिस्थितियां जरूरी हैं .,
डर हर व्यक्ति तो क्या हर जीव को सताता है ,हम डर से जीवन की समस्त जीवन पद्धति को सीखते हैं ,डर और इच्छा रहित कोई जीव या इंसान नहीं ,सिर्फ निर्जीव वस्तुएं ,डर और इच्छा रहित हो सकती हैं
,जब हमारे अन्दर जीवन जीने की इच्छा मौजूद रहती है तो हम डर से बचना सीखते हैं ,डर पर काबू पाना सीखते हैं
पेन्सिल्वेनिया यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिक साईकोलोजिस्ट, मार्टिन सेल्डिगमेन, ने अपने शोध कार्यों में पाया कि डर पर काबू पाना सीखने के लिए हमारी जीवन जीने की आकांक्षा का होना बहुत जरुरी है ,हम जीवन जीने के लिए तभी तक संघर्ष करते हैं जब हमें जीवन जीने की आशा बची होती है
,यह साबित करने के लिए की हर इंसान पर डर से मुकाबला करने के लिए ट्रेनिंग का बिशेष महत्व होता है मार्टिन महोदय ने कुत्तों के ऊपर एक अद्भुत प्रयोग किया ,उसने कुत्तो के two A,B,समूह बनाए
समूह A के कुत्तों को एक पिंजरे में बंद कर पट्टे से बांध दिया गया ,फिर उन्हें नियंत्रित मात्र में कुछ सेकेंड्स के लिए पिंजरे के फर्श में बिछी रोड्स से विद्युत करंट लगाया गया ,मार्टिन महोदय ने देखा की कुत्तों को भागने या उछलने की कोई स्वतंत्रता नहीं थी अतः ग्रुप अ के कुत्तों ने भाग्य को ही अपनी नियति मान लिया और करंट लगाने को चुप चाप लेटकर सहन करते रहे ,
अब उन्होंने दूसरा ग्रुप B का परीक्षण करते समय कुत्तों को पिंजरे में फ्री छोड़ दिया ,और उतनी ही मात्र में पिंजरे के फर्श में बिछी रोड्स से विद्युत करंट लगाया गया ,अब मार्टिन ने देखा की यह कुत्ते करंट लगाने पर पहाडी बकरी की तरह करंट प्रवाह होने उछलने लगे और अपना बचाव सीख गए
,इस ट्रेनिंग के बाद जब मुख्य प्रयोग शुरू किया गया तो पाया गया ,की जिन कुत्तों को पट्टे से बाँध कर करंट प्रवाह से आदी बना दिया गया था ,पिजरे में बिना पट्टा बंधे खुला छोड़ने पर भी न तो करंट से बचने के लिए उछलने की प्रक्रिया दुहराई ना ही उस खिड़की से बच कर भागने की कोशिश की जो की उस दीवार में खुली छोड़ दी थी ,लेकिन ग्रुप बी के कुत्ते पहले तो जlन बचने के लिए उछले बाद में खुली खिड़की से कूद कर भाग गए ,
यहाँ मार्टिन महोदय ने निष्कर्ष निकाला जिन कुत्तों को डर के साथ कम्प्रोमाईज कर खुद को डर से साथ अडजस्ट करना सीख लिया था उन्होंने जीवन से मोह छोड़ कर भाग्य के भरोसे डिप्रेसन में जीना सीख लिया था,लेकिन दूसरे ग्रुप ने अपनी जान बचाने का हर संभव उपाय करना सीख लिया था
,http://www.braincrave.com/viewblog.php?id=529 .
इन व्क्यंशों में छुपा है डर से मुकाबला कर दो चार हाथ कर लेने की कुब्बत ,वह गुर्जरों में कूट कूट कर भरी है ,
गुर्जरों ने डरना तो सीखा ही नहीं ,चाहे वो अरब आक्रान्ता रहे हों या अंग्रेज सबसे खूब लोहा लिया ,हार नहीं मानी रार खूब ठानी ,डर का सामना होने पर जहां अच्छे अच्छे योद्धाओं की घिग्घी बंध जाती है वहां गुर्जर डंटे रहते है ,यह सब डर से मुकाबले की ट्रेनिंग हमारे वातावरण में मौजूदऔर अंदरूनी ताकत हमारे खून और जींस मैं मौजूद है
आइये हम जाने डर से मुकाबले के लिए क्या परिस्थितियां जरूरी हैं .,
डर हर व्यक्ति तो क्या हर जीव को सताता है ,हम डर से जीवन की समस्त जीवन पद्धति को सीखते हैं ,डर और इच्छा रहित कोई जीव या इंसान नहीं ,सिर्फ निर्जीव वस्तुएं ,डर और इच्छा रहित हो सकती हैं
,जब हमारे अन्दर जीवन जीने की इच्छा मौजूद रहती है तो हम डर से बचना सीखते हैं ,डर पर काबू पाना सीखते हैं
पेन्सिल्वेनिया यूनीवर्सिटी के वैज्ञानिक साईकोलोजिस्ट, मार्टिन सेल्डिगमेन, ने अपने शोध कार्यों में पाया कि डर पर काबू पाना सीखने के लिए हमारी जीवन जीने की आकांक्षा का होना बहुत जरुरी है ,हम जीवन जीने के लिए तभी तक संघर्ष करते हैं जब हमें जीवन जीने की आशा बची होती है
,यह साबित करने के लिए की हर इंसान पर डर से मुकाबला करने के लिए ट्रेनिंग का बिशेष महत्व होता है मार्टिन महोदय ने कुत्तों के ऊपर एक अद्भुत प्रयोग किया ,उसने कुत्तो के two A,B,समूह बनाए
समूह A के कुत्तों को एक पिंजरे में बंद कर पट्टे से बांध दिया गया ,फिर उन्हें नियंत्रित मात्र में कुछ सेकेंड्स के लिए पिंजरे के फर्श में बिछी रोड्स से विद्युत करंट लगाया गया ,मार्टिन महोदय ने देखा की कुत्तों को भागने या उछलने की कोई स्वतंत्रता नहीं थी अतः ग्रुप अ के कुत्तों ने भाग्य को ही अपनी नियति मान लिया और करंट लगाने को चुप चाप लेटकर सहन करते रहे ,
अब उन्होंने दूसरा ग्रुप B का परीक्षण करते समय कुत्तों को पिंजरे में फ्री छोड़ दिया ,और उतनी ही मात्र में पिंजरे के फर्श में बिछी रोड्स से विद्युत करंट लगाया गया ,अब मार्टिन ने देखा की यह कुत्ते करंट लगाने पर पहाडी बकरी की तरह करंट प्रवाह होने उछलने लगे और अपना बचाव सीख गए
,इस ट्रेनिंग के बाद जब मुख्य प्रयोग शुरू किया गया तो पाया गया ,की जिन कुत्तों को पट्टे से बाँध कर करंट प्रवाह से आदी बना दिया गया था ,पिजरे में बिना पट्टा बंधे खुला छोड़ने पर भी न तो करंट से बचने के लिए उछलने की प्रक्रिया दुहराई ना ही उस खिड़की से बच कर भागने की कोशिश की जो की उस दीवार में खुली छोड़ दी थी ,लेकिन ग्रुप बी के कुत्ते पहले तो जlन बचने के लिए उछले बाद में खुली खिड़की से कूद कर भाग गए ,
यहाँ मार्टिन महोदय ने निष्कर्ष निकाला जिन कुत्तों को डर के साथ कम्प्रोमाईज कर खुद को डर से साथ अडजस्ट करना सीख लिया था उन्होंने जीवन से मोह छोड़ कर भाग्य के भरोसे डिप्रेसन में जीना सीख लिया था,लेकिन दूसरे ग्रुप ने अपनी जान बचाने का हर संभव उपाय करना सीख लिया था
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Thursday, September 29, 2011
डराने के लिए ,डर का कारोबार.
डराने के लिए ,डर का कारोबार. |
The oldest and strongest emotion of mankind is fear." --- H.P. Lovecraft . क्या डरना जरूरी है ??. डर का हमारे आधुनिक जीवन में क्या महत्व है ? आधुनिक सोच यही कहती है नियंत्रित डर से हम अपने मस्तिष्क को खतरों से लड़ने की ट्रेनिंग दे सकते हैं .हम अपने परिवार को स्पेसियली छोटे बच्चों को भी आज डरावनी फिल्मों को देखने की इजाजत आराम से दे रहे हैं . क्या इसमें कोई खतरा तो नहीं ??? आज हमारे लिए डर पर काबू पाना बहुत जरूरी हो गया है , बच्चा पढाई के डर से पीड़ित है , किशोर प्रेम संबंधों की असफलता ,या न होने की आशंका से पीड़ित है , पिता कारोबार और नौकरी के डर से पीड़ित है , तो ग्रहिणी परिवार की समस्यायों से डरती है , ब्रद्ध मृत्यु के डर से व्याकुल हैं ,यानी डर सबको सताता है , तो फिर डर से बचा कैसे जाये ?? सिर्फ नियंत्रित स्थितियों में ट्रेनिंग द्वारा डर पर काबू पाना सीख सकते हैं,कहते हैं कि डर के आगे जीत है चाहे वो अड्वेंचर गेम हों या फ़िल्में ,कहानी या वार्तालाप,कॉमिक या सीरियल .कुछ भी एसा हो जो काल्पनिक डर पैदा कर धड़कन बढ़ा दे ,आज का फिल्म उद्योग चाहे होलीबुड,हो या बौलीबुड .सभी जगह डर का कारोबार चल रहा है ,बिना डर को शामिल किये कोई फिल्म बनाना असंभव सा लगता है , एसा क्यों है ??? आधुनिक काल के शोधकर्ताओं ने पाया है कि डर सबसे अधिक ताकतबर भावना है ,आज लोग डराने के लिए पैसे खर्च कर रहे हैं ,अगर इंसान के सामने से डर ख़त्म हो जाये तो जीवन नीरस सा लगता है ,हम डर के साए में रहकर जितना तेजी और सटीकता से अपने कार्य को अंजाम देते है ,उतना किसी अन्य भावना के द्वारा नहीं ,डर के दौरान हम लालच ,और सेक्सुअल अट्रेकसन, से भी अधिक तेजी काम को अंजाम देते हैं , एसा क्यों ? हमारे शोधकर्ता बताते हैं ,कि जब जीवन खतरे में होता हैं तो हमारे शरीर के अन्दर बहुत तेजी से एड्रेनेलिन नामक हारमोन का श्रवण (secretion ) होता है ,जो कार्य को तेजी फुर्ती और दुरुस्ती से संपन्न करवाता है ,हमारा मस्तिस्क ,और पूरा शरीर एक मशीन की तरह बिना थके अवश्यक महत्वपूर्ण क्रियाओं को अंजाम देता है , यही कारण है कि आज होरर/डरावनी फिल्मों की मांग तेजी से बढ़ती जा रही है ,आज अड्वेंचर खेलों का प्रचलन बढ़ रहा है ,आज जांवाजी एक जूनून सा बन गया है,डर के दौरान एक शर्त है ,आपको खुद के ऊपर डर को काबू नहीं पाने देना है .अगर डर ने आपके ऊपर काबू पा लिया तो ,आप कुछ भी नहीं कर सकते , इसलिए सबसे महत्वपूर्ण है डर पर काबू पाना , यही कारण है ,कि हमें डर पर काबू पाने के लिए खुद को बार बार डरने की ट्रेनिंग देनी पड़ती है ,क्योंकि डर के आगे जीत है .किसी ज़माने में हम बच्चों को डरावनी मूवी देखने की इजाजत नहीं देते |
थे |
क्योंकि पुराने ज़माने की फ़िल्में भूत प्रेत से डराने की कोशिस करतीं थीं ,और उसका दुष्परिणाम होता था,रात में बच्चों का सपने में डर जाना ,या सदैव के लिए भूत से डरपोक बन जाना लेकिन आज की फिल्मों में फिल्म देखने के बाद सदैव के लिए डरपोक बन जाने का खतरा बिलकुल नहीं है ,क्योंकि आज की फ़िल्में पूरी तरह काल्पनिक हैं ,हम अपने बच्चों और स्वयं को इस काल्पनिक डर से सपने में तो डर सकते हैं ,लेकिन स्थायी रूप से डरने के लिए डरने का वास्तविक कारण काल्पनिक होने के कारण ,हम अपने बच्चों को और स्वयं को डर के प्रति आश्वश्त कर सकते है , हम आज के युवा को हम हिंसा रहित साफ़ सुथरी फिल्मों से संतुष्ट नहीं कर सकते ,यद्यपि पुरानी फिल्मों में भी खलनायकों की परम्परा रही है लेकिन उनमें नायक प्रधान फ़िल्में अधिक सफल होतीं थीं ,लेकिन आज का दौर खलनायक प्रधान फिल्मों की और बढ़ रहा है ,डर पर आधारित फिल्मों का नया दौर सा चल पड़ा है |
सबसे सफल कारोबार करने बाली होलीबुड की 12 फिल्मों में से 9 फ़िल्में (75 % ) काल्पनिक डर पर आधारित हैं , |
,आज का डर भूत प्रेतों से नहीं नहीं , नई वैज्ञानिक खोजों पर आधारित , डायनोसोर्स(जुरासिक पार्क ) , गोडजिला , एलियंस, स्टार वार्स |
,हेरी पोटर में जादुई खलनायक १ to 6, लोर्ड ऑफ़ दा रिंग्स 1to 3 . दा ममी, |
टाइटेनिक |
ममी |
रिटर्न्स |
,एक्सोर्सिस्ट. ,जोड़ीअक, सिक्स्थ सेन्स , इंटरव्यू विथ वेम्पायर, ,हेलोबीन, हौन्टिंग मूवीज से डराया जा रहा है .इसे देखने के लिए हम उतावले हैं ,वयस्क तो वयस्क आज डरने के लिए बच्चे भी उतावले हैं ,लेकिन ध्यान रहे ,मूवी के बाद बच्चों को वास्तविकता से अवगत करा दें ,यह सब काल्पनिक है . |
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डराने के लिए
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